बेदी और पवार आरएसएस की विचारधारा के पोषक है : कृष्ण जमालपुर

हरियाणा की भाजपा सरकार दलित विरोधी नीतियों को दे रही है बढ़ावा : कृष्ण जमालपुर

चीफ रिपोर्टर विक्रांत टांक 

हरियाणा/कैथल : बहुजन समाज पार्टी हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष कृष्ण जमालपुर ने भाजपा सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा है कि आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी दलित प्रतिनिधि अपने समाज के नहीं बल्कि पार्टी के एजेंडे के प्रतिनिधि बनकर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. अम्बेडकर द्वारा “दलितों की सबसे बड़ी राजनीतिक हार” बताए गए पूना पैक्ट के दुष्परिणाम आज भी दलित समाज भुगत रहा है। जमालपुर ने आरोप लगाया कि हरियाणा के सामाजिक न्याय राज्यमंत्री कृष्ण बेदी और भाजपा नेता कृष्ण लाल पवार आरएसएस की विचारधारा के पोषक हैं और डॉ.अम्बेडकर की विरासत का अपमान कर रहे हैं।
 उन्होंने बेदी द्वारा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को “दलितों का भाग्यविधाता” बताने को निंदनीय और अम्बेडकरवाद से विश्वासघात बताया।उन्होंने कहा कि हरियाणा के विश्वविद्यालयों में आरक्षण नीति और रोस्टर प्रणाली में भारी अनियमितताएं हैं, फिर भी सरकार और मंत्री चुप हैं।एम.डी.यू. सहित अनेक संस्थानों में दलितों के लिए आरक्षित पद खाली पड़े हैं या जानबूझकर उन्हें भरने में बाधा डाली जा रही है। उन्होंने विश्वविद्यालयों में दलित वाइस चांसलर की अनुपस्थिति, रोस्टर में हेराफेरी तथा सेवा विभाग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए। बीएसपी नेता कृष्ण जमालपुर ने कहा कि सत्ता में बैठे तथाकथित दलित नेता अब अम्बेडकरवाद के अनुयायी नहीं सत्ता के दलाल बन गए हैं। दलित समाज को रेवड़ियाँ नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकार चाहिए। बीएसपी की माँग है कि विश्वविद्यालयों में आरक्षण नीति की सख़्ती से पालना हो।
बहुजन समाज पार्टी प्रदेश सचिव  डॉ.मनोज ग्रोवर ने कहा कि वर्तमान समय में प्रदेश में लगभग चौबीस सरकारी विश्वविद्यालय है, आरक्षण प्रणाली के हिसाब से अनुसूचित जाति वर्ग के पांच पद  कुलपति और पांच पद रजिस्ट्रार के बनते हैं की प्रदेश के किसी भी विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति वर्ग से कुलपति की नियुक्ति नहीं की गई है और न ही रजिस्ट्रार के पद पर उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है जो प्रदेश सरकार की दलित विरोधी मानसिकता को दर्शाता है, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में वर्ष 1976 से अब तक का वास्तविक रोस्टर सार्वजनिक किया जाए, बैकलॉग भर्तियों को प्राथमिकता से भरा जाए और अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग को प्रशासनिक पदों पर समान अवसर मिले। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जवाब नहीं दिया तो दलित समाज सड़कों पर उतर कर आंदोलन करेगा और चुनावों में इसका माक़ूल जवाब देगा।

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