मीडिया को निभानी चाहिए अपनी जिम्मेदारी

नशा छोड़ो, जिंदगी से नाता जोड़ो

विक्रांत टांक (वरिष्ठ पत्रकार)
प्रधान खोजी पत्रकार संघ 
VikrantLeader@gmail.com

भारत के युवाओं को देश का भविष्य माना जाता है, लेकिन यह भविष्य नशे की लत की काली परछाई में घिरता जा रहा है। नशा अब सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं बल्कि गांवों और कस्बों में भी अपने अपने पांव पसार चुका है। चिट्टा, अफीम, ड्रग्स, तंबाकू और अन्य मादक पदार्थों की समस्या गंभीर संकट है। यह सामाजिक और आर्थिक विकास में एक बड़ी बाधा बनती जा रही है। युवाओं की हर समस्या की जड़ सिर्फ नशा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और अन्य रिपोर्टों के अनुसार भारत में हर साल भारी संख्या में लोग नशे के कारण अपनी जान गंवाते हैं। खासतौर पर 15 से 35 आयु वर्ग के युवा सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। नशे के कारण न केवल उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत भी बिगड़ती जा रही है। नशे की लत के कारण ज्यादातर युवा अपराध के दलदल में धंसते जा रहे हैं। शहरों में ड्रग्स की तस्करी और बढ़ती उपलब्धता, साथ ही गांव में शराब, हुक्का, तंबाकू का अति प्रयोग, इसे और गंभीर बना देता है। खासतौर पर पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली-एनसीआर उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और हरियाणा राज्य में नशे की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। 
नशे की समस्या को समझने के लिए हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना होगा। तनाव, डिप्रेशन व बुरी संगति में रहने कारण भी युवा नशा करने लगते हैं। आसपास का माहौल भी बहुत ज्यादा मायने रखता है। माता पिता अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते। जिस कारण बच्चे नशे में अपना जीवन बर्बाद करने लगते हैं। नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने में प्रशासन भी कहीं न कहीं कमजोर पड़ जाता है, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार भी सरकारी विफलता का एक बड़ा कारण बनता है। अज्ञानता और शिक्षा की कमी भी नशा मुक्ति अभियान को कमजोर करती है। नशे के प्रभावों के बारे में सही जानकारी का अभाव इसे बढ़ावा देता है। नशा सिर्फ एक व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है। नशे के कारण हृदय रोग और मानसिक बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। नशे के आदी युवा अपनी तलब पूरी करने के लिए चोरी, लूटपाट व हत्या जैसे अपराध में भी शामिल हो जाते हैं। नशे की समस्या से लड़ने में एनजीओ सरकार की सहायता कर सकते हैं। एनजीओ शिक्षा और जागरूकता को लेकर स्कूल व कॉलेजों में नशे के दुष्प्रभावों पर विशेष कार्यक्रम में आयोजित कर सकते हैं। एनजीओ परामर्श और पुनर्वास केंद्र खोल सकते हैं। नशे के आदी लोगों के लिए काउंसलिंग और पुनर्वास सुविधाएं उपलब्ध करवा सकते हैं।
युवाओं को नशे से बचाने के लिए एनजीओ खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करवा सकते हैं और युवाओं को बता सकते हैं कि वह खेलों में भाग लेकर अपने भविष्य को उज्जवल बना सकते हैं। इसके साथ-साथ मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। मनोरंजन के नाम पर शराब और तंबाकू का महिमामंडन बंद होना चाहिए। इसके बजाय नशा छोड़ने वाले लोगों की प्रेरणादायक कहानियां दिखाई जानी चाहिए। सरकार, एनजीओ व मीडिया को एक मंच पर आकर नशे के खिलाफ एक युद्ध स्तर पर अभियान चलाना होगा। हालांकि की नशे की समस्या का हल करना आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। हमें याद रखना होगा कि हमारा लक्ष्य सिर्फ एक नशामुक्त व्यक्ति नहीं, बल्कि नशा मुक्त भारत बनाना है।

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