कलम छोड कर कटार थाम रहे हैं किशोर

लेख

 कलम छोड कर कटार थाम रहे हैं किशोर

 "चीफ रिपोर्टर विकांत टांक"

नाबालिग बच्चों में अपराधिक प्रवृति बढती जा रही है। गांव बरटा में डबल मर्डर केस सामने आया है, जिसमें 11 नाबालिगों ने मिलकर दो नाबालिग बच्चों की हत्या कर दी। नाबालिगों के द्वारा हत्या करने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी नाबालिग के हत्या में शामिल होने के बात सामने आती थी। लेकिन कुछ समय से सिर्फ नाबालिग अपराधियों की ही खबरें सामने आ रही हैं। नाबालिगों में हिंसक प्रवृति बढने का कारण कभी तो गेम और कभी नशे की लत को मान लिया जाता है। लेकिन इसका एक अन्य कारण ओर से भी हो सकता है। जिस पर शायद ही किसी नजर गई हो और यदि गई भी तो सिर्फ अपराधियों की। 
जो नाबालिग हैं वो भी यह बात बहुत अच्छे से जानते है कि यदि वह पकडे भी गए तो कम से कम उन्हें उम्र कैद या फांसी की सजा तो नहीं होगी। भले ही वह कैसा भी जघन्य अपराध करें, बस उन्हें बाल सुधार गृह सिर्फ तीन साल के लिए ही रहना है। वहां भी उन्हें बेहतर सुविधाए मिलेंगी। जैसी पढ़ने लिखने सहित वैसी तमाम सुविधाएं जो कि वह चाहते है। दिल्ली का निर्भया रेप केस तो सभी को याद होगा। निर्भया के साथ सबसे ज्यादा बर्बरता करने वाला आरोपी नाबालिग ही था। उसके बालिग होने में कुछ दिन शेष थे। यही वो वजह थी, जिससे वह बढी आसानी से छुट गया। नाबालिगों के हत्यारा बनने में सिर्फ नाबालिग ही जिम्मेवार नहीं है बल्कि इसके लिए उनके माता पिता सहित समाज भी उतना ही जिम्मेवार है। वह माता पिता कहलाने के भी लायक नही हैं, जो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दे पाए। बच्चों के किए की सजा माता पिता को भी भुगतनी पडती है और माता पिता के द्वारा किए गए गलत कामों की सजा बच्चों को भी भुगतनी पडती है। क्योंकि वही लोग इसके लिए जिम्मेवार है। 
आज कल माता पिता अपने कामों में इतने अधिक व्यस्त है कि उन्हें नहीं पता उनका बेटा कैसे गीत सुन रहा है, किनको वह अपना आर्दश मानता है। युया ऑटो के पिछे सुखा कालवा, लारेंस बिश्नोई जैसे गैंगस्टरों के पोस्टर लगाए घुम रहे हैं। वो नाबालिग गीत कैसे सुन रहे है। एक खटोला जेल की भीतर, पहुंचा कर कफन और पराली ले क।

नाबालिक लड़के भी खुद को बहुत बडा बदमाश मानते हैं और बदमाशी चमकाने के लिए ही मर्डर जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। हत्या कर फर्जी कारण बता देते हैं। सबसे ज्यादा बदमाशी का बुखार इन्ही नाबालिगों को चढ़ा हुआ है। हिंसक और बदमाशी जैसे गीत बनाने में हमारे हरियाणवी कलाकार शायद सबसे आगे है। इतनी अधिक अश्लीलता, बदमाशी और डबल मीनिंग गीत बनाते हैं और फिर यही लोग कहते है कि हमारे संस्कारों को खराब करने का काम पाश्चात्य संस्कृति कर रही है।
एनजीओ में काम करने वाली वदना बागडी ने बताया कि जब भी एनजीओ के किसी कार्यक्रम में उन्हें मौका मिलता है तो यह नाबालिगों को जागरूक करने का काम करती है ताकि वह अपराध से बचे रहे। माता पिता बच्चे का पहला स्कूल होते हैं। हम जैसा समाज चाहते हैं, हमें उसे वैसा बनाने का प्रयास करना होगा। सभी को मिलजुल कर प्रयास करना होगा। मीडिया, समाज, संगठन, एनजीओ, पुलिस नेता, विद्यार्थी, अध्यापको सभी को प्रयास करना होगा। तभी एक सभ्य समाज बनाया जा सकता है।

 नाबालिगों का काइम का ग्राफ मासूमियत से हैवानियत तक

नेशनल काइम रिकॉट ब्यूरो की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार आकडे बताते है कि भारत में नाबालिगों में अपराध करने की प्रवृत्ति बढती जा रही है। हर साल नाबालिगों के खिलाफ लगभग 30 हजार अपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। 35 हजार से ज्यादा नाबालिगों को गिरफ्तार किया जाता है। दस मे से नौ नाबालिगों पर केस भी साबित हो जाता है। 2021 में अपराधिक मामलो में करीब 37 हजार नाबालिगों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें से 31 हजार से ज्यादा नाबालिग अपने माता पिता के साथ रहते थे। अब आप स्वयं ही इस पर विचार करें कि इन नाबालिगों के हत्यारा बनने में किसका हाथ है।

Post a Comment

0 Comments